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________________ विक्रम चरित्र लिये उस चोर के साथ युद्ध किया, उस बीच उस के ममस्थान पर उस चोरने ऐसा प्रहार किया कि, वह अतिथि तुरंत ही मर गया. अतः अब मेरे लिये मरने के सिवाय कोई उपाय नहीं है. इस लिये मैं अब जल्दी ही अपने पति तथा अतिथि को लेकर जंगल में जाती हूँ. पति के मर जाने पर कोई स्त्री रोती है, तो कोई मर जाती है, कोई अन्य पति करती है, तो कोई घर में ही रहती है ' पर मैं अपने पति के साथ लोगों के सामने उसी चिता में जल कर मरूँगी, और परलोक जाकर निर्मल यश प्राप्त करूंगी. कहा है कि-'सच्ची सती यही है, जो पति के पर धोकर पीती है, और प्रिय के परलोक जाने पर अपने पति के शरीर के साथ ही स्वयं भी उसी 'चिता में जल भरती है.' जसे-- साची सती स मानीइ, पति एग थोई विति प्रिय परलोकपंथीह दहइ देह जि दहति. ऐसा कह कर उसने उस चोर तथा अपने पति के शरीर को शुद्ध पानी द्वारा स्नान करा कर साफ किया. सुत्रह धन्यप्रिया रत्नम जरीने धर्मकार्य में धन का व्यय किया, और सज्जनों की साक्षी में बह काष्टक्षक्षण के लिये तैयार हुई. धन्य सेठ के मर जाने का समाचार तथा उस के साथ ही रत्नमंजरी के काष्टभक्षण की तैयारी के समाचार सुनकर उजयिनी नगरी के लोग उस सती के दर्शनार्थ आने लगे. उस सब की आखो में आंसु थे. लोग सती को नमस्कार कर P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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