________________ साहित्यप्रेमी मुनि निग्अनविजय संयोजित अपयश ही रहा. अरे! अपने पति को मारने और अन्य पुरुषको आलिंगन करने की इच्छा इन दोनों पागों से अनंत दुःखदायी किस नरक में मेरा पात होगा ? हाय रे ! सुबह मैं पति रहित हो जाउँगी, तब मेरी क्या दशा होगी ? परलोक में भी नरक में गिरने से मैं मान दुःख को कैसे सहूँगी ? कुत्सित वनवाली, अलकार रहित, पति रहित विधवा बनी हुई मैं पापिनी अपना मुंह किस दिखाउंगी ? मैने पति की हत्या करके जो पाप किया है, वह लज्जा से मैं किसी को नहीं कह सकती. अन तो मेरे लिये कोठी में मुंह डाल कर राना ही रहा. यदि उच्च स्वर से रेती भी हूँ, तो मेरा सब धन राजा ले लेता है, अतः अब तो पति के साथ मेरा मरना ही अच्छा है. सुबह इस के लिये कोई प्रपंच करना पडेगा. अग्निप्रवेश कर के या जल में डुब कर मर जाना अच्छा है, लेकिन विधवा होकर जीवन धारण करना मेरे लिये उचित नहीं है. - यदि स्त्री शुद्ध स्वभाव की हो, विविध प्रकार के दान देती भी है, तब भी पतिरहिता स्त्री निन्दा के पात्र बनी ही रहती है.' इस प्रकार विचार कर उसने अपने पति के मत शरीर को, भूमि पर पड़ी हुई दोनों लाशो पर कपडा ढक दिया. फिर प्रातःकाल रत्नम जरी रातो हुई लोकों के आगे इस प्रकार कहने लगी, " हाय! हाय ! रात को मेरे घर में कोई चोर घुस गया, उस नीचने मेरे पति और एक पुण्यशाली अतिथि की हत्या कर डाली. उस अदिथिने मेरे पति की रक्षा करने के P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust