________________ विक्रम चरित्र धीरे से उठी, और धर्म ध्यान करने में तत्पर हुई, फिर दो घडी तक धर्म ध्यान करके पुनः अपने पति के पास गई, और . पति को पंखे से ह्या करने लगी. इधर राजा जो कपटनिद्रा से सोये थे, रत्नमजरी को पतिभक्ति देख कर विचार करने लगे, 'धन्य वी प्रिया सतीरत्न है, यह सचमुच अपने पति से ही संतुष्ट है, और परपुरुष से विमुख है. गृहस्थ होते हुए भी सदाचारिणी है. अतः यह सती देवों की भी प्रशंसापात्र है.' रजमंजरी का एकाएक पतनः ___ मध्यरात्रि बीतने पर कोई चोर द्रव्य हरण की अभिलाषा से धन्य सेठ के घर में गुप्त रूप से घुसा. अपने पति को निद्रावश जानकर, और उस सुंदर आकृतिवान चोर को देख कर कोई पूर्व भवके अशुभ कर्म संयोग से रत्नमंजरी सुध बुध खो बैठी. उस चार के रूप को देख कर उस की काम अभिलाषा यकायक जागृत हो गई. उस स्वरूपवान नवयुवक चोर को देखते ही, कामबाण के प्रहार से विह्वल होकर, उस चोर को धीरे धीरे कहा, " यह घर, धन और मेरी यह देह इन सब को तुम भोगसुख प्रदान कर के कृतार्थ करो. हे परम आनन्द के देनेवाले, सरीर सौन्दर्य से कामदेव को भी निरस्कृत करनेवाले, मेरी देह से भोग भोग कर के मुझे कृतार्थ करो." ... उस की उस बात को सुनकर चोरने डरते हुए धार खर में कहा, " तुम इस प्रकार मत बोलो, जैसा कि-. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust.