________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित . 507 E संहिता में लिखा है, जो बुद्धिमान् पुरुष रात में हमेशा आहार . का त्याग करते है, उन्हे एक महिने में एक पक्ष 15 दिन के उपवास का लाभ मिलता है, और शास्त्र में नरक के चार द्वार है, 'जिस में पहला रात्रि भोजन है, दूसरा पर स्त्री गमन, तृतीय सन्धान केरी वगेरे का पाणी के अंशवाला आचार और चौथा अनंतकाय कंदमूल का भक्षण करना है वह.' - यह सुन कर रत्नमंजरी बोली, “हे पथिक ! तुम बहुत पुण्यवान् हो और उत्तम पुरुष लगते हो, क्यों कि तुम्हारा मन धर्म में दृढ है. जो रात्रि भोजन नहीं करते वे अवश्य ही स्वर्गगामी होते हैं, और जेस रात में खाते है वे नरकगामी होते हैं." इस के बाद उसने सुंदर चित्रशाला में सुंदर शय्या पर सुखप्रद बिछौना बिछाकर राजा के सोने का प्रबंध कर दिया. विक्रमराजा भी पंचपरमेष्ठी को मन में नमस्कार करके उस का .' चरित्र देखने के लिये कपटनिद्रा से सो गये. पर कौतुक से जागते ही रहे. रत्नमंजरीने अपने पति के चरणों को धोया, और फिर उस पानी से गंगाजल की तरह, आदर सहित अपने अंगों को घोया. गंगा के समान पवित्र रूई की तरह कोमल, कपूर, कस्तूरी आदि से सुगंधित की हुई सुंदर शय्या पर अपने हाथ का सहारा देकर यत्नपूर्वक अपने पति को सुलाया, वह क्षणभर वहां उस के पास टहरी. तब उसने पैर और शरीर को योग्य रूप से दबाया. जब तक पति सुख से नहीं सो गये तब तक वहीं रही. अपने पति को सोया जानकर वह P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust