________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 505 चरित्र देखने की इच्छा हुई, और उसे देखने का विक्रम महाराजाने दृढ निश्चय मन ही मन कर लिया.. प्रिय पाठकगण ! अब यहां यह प्रकरण पूरा कर आगे का रहस्यमय वृत्त न्त अगले प्रकरण में पढ़ें तामाकरण साठवाँ-प्रकरण रत्नमंजरी व महाराजा विक्रम : 'कीर्ति केरा कोटडा, पाडया नहीं पडत.' रात्रि में विक्रमराजाने एक मुसाफिरका वेश धारण किया. अपने सखा के रूप में एक छोटीसी तलवार लेकर निकल पडे उन्होने अपनी अंगुली में केदार मुद्रा पहनी थी; योगी के योग्य वस्त्र पहने हाथ में सुंदर दण्ड धारण किये, और गंगा की मिट्टी से अपने बारह अंगो पर लेप करके इस प्रकार अपना वेष बदल कर धन्य के दरवाजे पर पहूँचे. पधिक रूपधारी राजाने यहां जाकर कहा, "हे सुभगे ! मैं नगर में घूमता हुआ तुम्हारे घर पर अतिथि रूप में आया हूँ.” साथ ही अतिथि सत्कार का लाथ बताते हुए बोले, " जिस व्यकि के घर अतिथि को भोजन तथा रात्रि में रहो का स्थान मिलता है, सज्जनलोग उसी की प्रशंसा करते है. और मुकिरूपी स्त्री भी उस की इच्छा P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust