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________________ 504 विक्रम चरित्र / मौनम्रतवाली, सदाचारी, सद्गुणों से युक अाक्रोधवाली, और अल्पभाषिणी वह हमेशा आनंद से अपने पति के साथ समय बिताने लगी. उस के पतिव्रत के प्रभाव से उसके चरण जल से वात, पित, कफ से होनेवाले तमाम रोग नष्ट हो जाते थे. उस के चरणजल से पुत्र रहितों को पुत्र प्राप्ति और घढा हुआ सर्पादि का जहर भी उतर जाता था. उस के दृष्टि मात्र से जंगल का सूखा वृक्ष भी नवपल्लवित हो उटता था. और उसके दृष्टि-मात्र से ही सर्प-माला, अग्नि-पानी, और सिंह-सियार बन जाता था. जहाँ जहाँ वह सुंदर गुणशालिनी रत्नमंजरी रहती थी वहां अंतिवृष्टि, अनावृष्टि, चूहे, टिड्डी, तोते, स्वचक्र, परचक्रके ये सात ईति-सात भय नहीं होते थे, मूलचरित्रकार ही कहते हैं, " उसी, स्त्री का अद्भुत महात्म्य क्या कहे. वह चौंसठ कलानिधान, शीलरुप अलंकार धारण करनेवाली रत्नमंजरी साक्षात् लक्ष्मी की तरह उस घर में रहने लगी.” . धन्य सेठ भी ऐसी प्रिया को पा कर, प्रिया सहित धर्म कर्म में खूब तत्पर रहेता है. और इतना सुखी है कि उसे सूर्य के उदय तथा अस्त होने का भी पता नहीं चशा. सातों क्षेत्रों में वह खूब धन का व्यय करता था. इस प्रकार राजा विक्रम धन्य श्रेष्ठी व रत्नमंजरी का वृत्तान्त सुन कर आश्चर्यचकित हुए. फिर सभा विसर्जन कर अपने नित्य कर्मों को करते हुए शेष दिन व्यतीत किया। रात्रि हुई तब अपने आपको महासती रत्नमंजरी का रूप मार P.P.AC. Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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