________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरक्ष विजय संयोजित 503 के मस्तक पर वर्षा हुई, साथ ही अकस्मात् एक पुष्पमाला रत्नमंजरी के हाथ में आई, जिसने प्रेमपूर्वक धन्य सेठ के गले में आरोपित कर दी. MOREHIVIT , mar रत्नम जरी वरमाला धन्यशेठ के गले में आरोपित कर रही है. चित्र नं. 26 जब रत्नमंजरी के पिताने अपनी पुत्री के इस वृत्तान्त को सुना तो उसने भी शीघ्र ही उस वृद्ध धन्य श्रेष्ठी के साथ अपनी पुत्री का विवाह महोत्सव किया, रलमंजरी की पतिसेवा - अपने पतिके चरणों को घोकर आनंदित मन से वह चरणोदक हमेशा पीने जगी, और हमेशा अपने पति को भोजन कराने के बाद ही वह भोजन करती थी. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust