________________ विक्रम चरित्र कन्या केवल वर का रूप देख कर पसंद करती है, माता वर के धन को देखती है, पिता वर के विद्या तथा गुणों को और भाई आदि वर के कुल को देखते है. लेकिन अन्य स्वजन लोग तो केवल मिष्टान्न ही चाहते है. जिस पुरुष में सुंदर कुल, शील, भाग्यशालिता विद्या, धन, सुंदर शरीर और योग्य वर ! आदि गुण हो उस पुरुष को पिता अपनी पुत्री को दें.'. वर में माता-पिता तथा बांधव इन गुणो का होना पसंद करते है, लेकिन कन्या तो अपने मनपसंद पति की ही इच्छा करती है. कहा भी है-- __ कन्या तो अपनी रुचि के अनुसार चाहे वह राजा हो या रंक स्वरुपवान् हो या कुरुप उसे ही मन से चाहती है, हे धन्य सेठजी ? मै भोगसुख के लिये या धन प्राप्त करने की इच्छा से व पुत्र प्राप्ति के लिये तुम्हें नहीं वरती हूँ, मैं केवल पुण्य की पूर्ति करने के लिये, शीलपालन के हेतु से तुम्हारे समान सुशील व्यक्ति को प्राप्त करके अपनी कौमार्यवस्था का त्याग करना चाहती हूँ. अतः अब आप अपने हृदय में विचार करके अभी ही मुझे अंगीकार कर सुखी बने. मैंने मन, वचन और काया से आप को वरण कर लिया है, और आप के गले में मै अभी ही वरमाला पहनाती हु. उसी समय आकाश में देवदुदुभी का नाद हुआ, और ऐसी मनोहर आ काशवाणी हई कि इस कन्या का कथन सुंदर है, साथ ह' अशोक, चंपा आदि पंचवर्ण के सुगंधित फूलों की उन 5 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust