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________________ विक्रम चरित्र के समान और लावण्य की खान समान उस रत्नमजरी की अवस्था शादी के योग्य हुई. ईक्कीस वर्ष की उम्र हो जाने पर भी उस के मन में विवाह करने की इच्छा नहीं हुई, साथ . ही पुरुषो के साथ विकाररहित रहते हुए निःसंकोच वार्तालाप किया करती थी. . ___ उसी वीच धन्य श्रेष्ठी की पत्नी गुणमंजरी का समाधिपूर्वक देहान्त हो गया. सेठने अपनी पत्नी की उत्तरक्रिया वगेरह की, उघर उस धन्यसेठ की उम्र 80 वर्ष की हो गई थी. रत्नम जरी जो उस के पडोस में ही रहती थी उसे वृद्ध और पत्नी रहित देख कर उसने मन में उस धन्य सेठ को अपना पति बनाना चाहा, और एक दिन धन्यसेठ को आदरपूर्वक कहने लगी, “गृहस्थों का समय गुणवान स्त्री के बिना नहीं कटता. हे धन्य सेठ ! अपनी पूर्व पत्नी के शोक का त्याग करो. मन को प्रफुल्लित करो, और किसी स्त्री के साथ विवाह कर हमेशा सुखी बनो." धन्यने कहा, " मेरा -शरीर शिथिल हो गया है, और मैं अतिशय वृद्ध हो गया हूँ. अतः अब मेरे साथ कौन सी कन्या विवाह करेंगी?" तब रत्नमंजरी ने कहा, “किसी वृद्ध कन्या को विवाह द्वारा अलकृत करो, जिस से वह आप की हमेशा अच्छी तरह सेवा करेगी." धन्य सेठ बोला, " उठने, चलने, बोलने और खडे रहने में भी मैं तो अशक्त हूँ, तो फिर स्त्री को ग्रहण कर क्या करूँ ? " वह बोली, " यदि तुम्हारी इच्छा मेरे साथ "विवाह करने की हो तो मैं अभी तुम्हारे साथ शादी कर के P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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