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________________ (ख) थे। भर्तृहरि अपनी प्रिया पिंगला (अनंगसेना)के द्वारा संसार के मोहजाल का परिचय प्राप्त कर अपने वैराग्यमय जीवन को प्राप्त / हुए / भर्तृहरि के वैरागी बन जाने पर अपने पराक्रम बल से उनका उत्तराधिकार विक्रमादित्य ने प्राप्त किया / इन्हीं महाराजा विक्रमादित्य ने अपने अतुल बल और उदार वृत्ति से अनेक परोपकारी कार्य कर जगत में अपूर्व यश उपार्जित किया / महाराजा ने भारतवर्ष की संपूर्ण जनता को उऋणि बना कर सुखी बनाया। इन्हीं महाराजा ने अपने नाम से नया विक्रम संवत् चलाया / इनके जीवन के अनेक रोमाञ्चक प्रसंगों तथा आश्चर्य जनक कहानियों से परिपूर्ण तथा अनेक सुन्दर आकर्षित भावपूर्णचित्रों से युक्त 500 पृष्ठ का प्रथम भाग गत दो वर्ष 'पूर्व प्रकाशित हो चुका है। ___ इस लिए पाठकगण वह पुस्तक प्राप्त कर एवं पढ कर उसका रसास्वादन करें। उसके अनुसंधान में उसका यह दूसरा भाग आपके हाथों में प्रस्तुत है / पाठकगण ! इसे आदि से अंत . पढ कर अपना अभिप्राय सूचित करें। प्रथम भाग की किंमत प्रचार के लिये मात्र रूपया पांच है। प्राप्ति स्थान-- (1) पण्डित भुरालाल कालीदास c/o सरस्वती पुस्तक भंडार, ठि० हाथीखाना, रतन पोल, अहमदाबाद (2) सोमचंद डी० शाह जीवन निवास के पास में, __पालीताणा (सौराष्ट्र) बम्बई व अहमदाबाद के प्रसिद्ध जैन बुकसेलरों से भी यह ग्रन्थ प्राप्त करसकते हैं: P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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