________________ 497 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित जाती है, दाँत गिर जाते है, दृष्टि भी मद पड़ जाती है, रूप का नाश हो जाता है, मुहमें से लार गिरती है, बंधुजन-स्वजनादि भी उस वृद्ध का कहना नहीं मानते, यही नहीं पत्नी भी सेवाभक्ति कम कर देती है, अतः धिक्कार ऐसी जरावस्थासे पीडित पुरुष को जिस की आज्ञा उस के पुत्र भी नहीं मानते. + हाथ कांपता है, सिर धुनता है, ऐसा व्यक्ति क्या करेगा, लेकिन जब उसे यमपुरी ले जाने के लिये कहता है तो वह उसे मना करता है, अर्थात् उस की ऐसी बुरी हालत होने पर भी वह मरना नहीं चाहता. अर्थात् जीना सभी का . पसंद है, मरना किसी को भी अच्छा नहीं लगता है. धर्महानि वृद्धापन सुत का मरण दुःख कहलाता है। भूख महादुःख होता सब में क्यों कि उदर पिस जाता है. इस प्रकार की वृद्धावस्था प्राप्त होने पर भी वह हमेशा पदकर्म करता है, और त्रिकाल जिनेन्द्र पूजा तथा गुरु की सेवा कर के अपने अशुभ कर्मो का नाश करता है उसकी गुणसुंदरी नामक पत्नी थी जो गुणवती और पतिपरायण थी. अपनी सुशील पत्नी होने से वह अपने को धन्य सम+ गात्र संकुचित गतिविगलिता दन्ताश्च नाशं गता, दृष्टिर्न श्यति रुपमेव हसते वक्त्र च लालायते; वाक्यं नैव करोति बान्धवजनः पत्नी न शुश्रूषते, धिक्कष्ट जरयाभिभूतपुरुष पुत्रोऽप्यवज्ञायते / / स. 11/252 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. * Jun Gun Aaradhak Trust