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________________ 496 _ विक्रम चरित्र वह धन्य धीरे धीरे वृद्धावस्था को प्राप्त हुआ, गात्र, शिथिल पड गये, दांतो को गिर जाने से मुह ढीला पड़ गया और धीरे धीरे सारे शरीर की सभी प्रकतिओ में कमी आने लगी. जरावस्था के लिये कहा भी है कि अवयव धीरे धीरे संकुचित होते है, गति धीमी पड गुप्त, न अतिप्रकट स्थान में रहनेवाला, 8 अनेक द्वार वाले घर में नहीं रहनेवाला 9 सदाचारी के साथ-मैत्री करनेवाला, 10 मातापिता का पूजक 11 उपद्ववाला स्थान का त्याग करनेवाला, 12 निंदनीय कार्यों से उन्मुख याने त्यागी 13 आयके अनुसार खर्च करनेवाला, 14 अपनी स्थिति अनुकूल वस्त्राभूषणादि पहननेवाला, -15 बुद्धिके आठ गुणोको धर्ता-याने धारक 16 सुयोग मिलने पर धर्म सुनने वाला, 17 अजीर्ण होने पर भोजन छोडनेवाला, 18 उचित समय पर भोजन कर उसे अच्छी तरह पचानेवाला, 19 धर्म, अर्थ, काम इन तीनो पुरुषार्थों का परस्पर बाधा न हो उस तरह साधन करनेवाला, 20 अतिथि, साधु और दीनों की शक्तिअनुसार सेवा करनेवाला, 21 कदाग्रह रहित, 22 सद्गुण पक्षपाती, 23 देशकाल के अनुसार निन्द्य आचार को त्यागनेवाला, 24 शक्तिअशक्ति को जाननेवाला, 25 व्रतधारी ज्ञानी वृद्धजनो का पूजक, आश्रित तथा अनाश्रितो का यथाशक्ति पोषणकर्ता, 26 दीर्घदशी, 27 कृतज्ञ, 28 विशेषज्ञ, 22 लोकप्रिय, 30 लज्जावान्, 31 दयावान्, 32 सौम्य, 33 काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, मत्सर को जीतनेवाला, 34 परापकारी, 35 इन्द्रियों को वश में रखनेवाला. अर्थात् ए पेंतिश गुण जीवन में आचरीत हो जाय, तो मानवता को सुशोभित करने वाले है. 1 सुश्रषा, 2 श्रवण', 3 ग्रहण, 4 धारणा, 5-6 उहाऽपाह' 7 अर्थ विझान, 8 तत्त्वज्ञान की विचारणा. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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