________________ उनसाठवा--प्रकरण पंच परमेष्ठी छे जग उत्तम, चौद पूरवना सार; गुण जस कहेतां पार न आवे, महिमा जास अपार. धन्यशेठ व रत्नमंजरी एक समय विक्रम राजा नगरचर्चा सुनने के लिये रात्रि में वेष बदल कर धूमने निकले, एक चौराहे पर लोगों आनंद पूर्वक इस तरह की बातें करते हुए सुना "इस नगर में धन्य नामक एक धनाढय श्रेष्ठी है, वह धर्म ध्यान के प्रति विशेष अनुरागी है, द्रव्य तथा भाव से त्रिकाल जिने पूजा करता है. उस की धर्मकार्य में मग्न, शीलवान् एक धर्मपत्नी है, उस स्त्री के समान इस समय पृथ्वी पर भी कोई अन्य सद्गुणी नारी देखने में नहीं आती. लोगों के मुख से उस सेठ और स्त्री का बहुत बहुत वर्णन सुनकर राजा आश्चर्य पाता हुआ अपने स्थान पर आया. और आनंदपूर्वक रात्रि बिताई. __ दूसरे दिन जब राजा राजसभा में आये तब उन्होंने मंत्रियों से धन्य श्रेष्ठी का निवासस्थान वगेरह पूछा, इस पर म त्रियोंने कहा, "हे स्वामिन् ! आपके नगर में धन्य नामक कितने ही धनवान व्यक्ति है. उन धनाढयां में कोई सदाचारी है, कोई शराबी, कोई पापी तो कोई वेश्यागामी है, P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust