________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 491 तब राजा अपनी रानी के पास जाकर एकान्त में उस के पीठ पर से वस्त्र हटा कर देखा. इस से देव कथनानुसार मार के चिह्न देख कर, उन के मन का संशय दूर हो गया. अपनी पत्नी को दुःशीला जान कर वह राजा मन ही मन चमत्कृत हुआ. पश्चात्ताप करने लगा." जब राजा विक्रमने यह बात सुनी तो उन्हें भी आश्चर्य हुआ और तब से वह अपनी सभी पत्नियों को समान मानने लगा. मन मोती और दूध रस इन का एही स्वभाव; फाटे फिर वे नव मिले करो क्रोड उपाय, लोलुपता दुःख का मूल है : उज्जैनी नगरी में धन्य नामक एक किसान रहता था. एकदा वर्षा ऋतु के दिन में घर के समीप अत्यंत कीचड होने की वजह से तथा पैर फिसल जाने से गाढ कीचड में कटीभाग तक फंस गया. उसने बाहर निकलने के बहुत प्रयत्न किये, किन्तु कीचड से मुक्त नहीं हुआ, तब वह सहायता के लिये लोगों को चिल्ला चिल्ला कर बुलाने लगा. उस समय अचानक महाराजा विक्रमादित्य उधर से निकल रहे थे, उन्होंने उस किसान को खिंच कर बाहर निकाला और पूछा, “तुम इस में कैसे फँस गये." तब धन्यने जवाब दिया, "हे नृप! मेरे इस पंक में डूबने का कारण सुनिये, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust