________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 489 है.४ अतः हे रानी, यदि तुम मुझे छोडकर जाओगी तो तुम्हारे लिये वह अवश्य अनर्थकारी होगा. बाद में और पश्चात्ताप ही करना होगा. यह सुन कर पत्नीने कहा, 'आप ऐसा न कहो. मैं वहां अवश्य जाउँगी, और उसके लिये आप मुझे “पान" / याने विवाह के कर्तव्य से मुक्ति का चिहन दे दे.' उसका ऐसा कहने पर राजाने भी उसे पान देकर विदा कर दिया. __रमाने अपने पति से तलाक-छुट्टी लेकर राजा चंद्र के नगर में गई, उतने समय में अकस्मात् राजा चंद्र कि. मृत्यु हो गई. तब वह पुनः लौट कर अपने पुराने स्वामी के पास आई. पर जब रमा चली गई थी, तो राजा मुकुंदने एक बुद्धिमती तथा विनयशील स्त्री के साथ विवाह कर लिया था. रमाने अपने को स्वीकार करने के लिये अत्यंत अनुनय विनय-प्रार्थना कि, इस पर मुकुंदने कहा, 'तुम जिस क्षत्रिय के साथ विवाह करने गई थी, उसी के पीछे काष्टभक्षण क्यों नहीं किया अर्थात् सती क्यों न हो गई ? अब मैं तुम्हे अपने घर में नहीं रख सकता.' हे राजन् ! उन दोनों से त्यक्ता होने पर जिस तरह वह रमा नामक स्त्री अत्यंत दुःखी हुई, उसी प्रकार इस वृत्तान्त के सुनने पर आप भी हमेशा पश्चात्ताप करोगे.' x ऐश्वर्यस्य विभूषण' मधुरता, शौर्यस्य वाक्सयमो, ज्ञानस्योपशमः श्रुतस्य विनयो वित्तस्य पात्रेव्ययः; . . अक्रोधस्तपसः क्षमाप्रभवतो धर्मस्य निर्व्याजता, सर्वेषामपि सर्व कामगुणितशील पर भूपणम् / / स. 11/183 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust