________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 487 आया. और वेश्या के घर गया. वहां त्रैलोकसुदरी वेश्या के साथ हमेशा बडे आमोद-प्रमोद में क्रीडा करने लगा. वहां वह सिंदूर से लक्ष्मी प्राप्त कर उसे देता और सुखपूर्वक रहता था. ____ एकदा उस वेश्या की माता-अक्काने अपनी पुत्री से पूछा, 'हे पुत्री! वह पुरुष हमेशा ही तेरी मांगी हुई लक्ष्मी कहां से लाकर देता है ? ' अंत में अक्काने अपनी पुत्री द्वारा उस की लक्ष्मी प्राप्ति का कारण क्या है वह जान लिया, तब वह छल कपट से उस सिंदूर को प्राप्त करने का प्रयत्न करने लगी. कहा कि वेश्या, अक्का, राजा, चोर, पानी, बिल्ली, बंदर, अग्नि और सोनी ये मनुष्यों को हमेशा ठगते हैं. त्रैलोकसुदरी के हमेशा ही हठपूर्वक पूछने पर पद्मने अत में सिंदूर द्वारा लक्ष्मी प्राप्ति का कारण उसे कह दिया. तब वह सिंदूर तुरंत पद्म की सारी सम्पति सहित उस योगी पास चला गया. अतः पद्म पुनः दरिद्र बन गया, और बहुत पश्चात्ताप करता हुआ अपने घर लौट गया. . राजपुरोहित की पुत्री वालपंडिता बोली, 'हे राजन् ! आप भी मत्स्यहास्य का कारण जानकर मंण्डक और पद्म की तरह दुःखी होंगे, और आप को पश्चात्ताप होगा, लेकिन फिर भी राजाने उससे मत्स्यहास्य का कारण बताने के लिये अति आग्रह किया. तब वह बालपंडिता बोली, 'हे राजन् ! 12 P.P.AC.Gunratnasuri M.S: Jun. Gun Aaradhak Trust