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________________ 486 विक्रम चरित्र हास्य का कारण आग्रहपूर्वक पूछा, तब पुरोहितकन्याने कहा, "हे राजन् ! इस का कारण जानने से आप सिंदूर प्राप्त करनेवाले पद्म के समान दुःखी होंगे, राजा के आग्रह पर पुरोहित कन्याने पद्म का वृत्तान्त कहना शुरू किया. पद्म की कथा: पहले किसी समय में पद्मपुर नामक एक नगर में पद्म नामक एक कौटुम्बिक किसान रहता था. वह बहुत धनवान था. धीरे धीरे उसके पास का सारा धन नष्ट प्रायः हो गया. तब वह अपने मनमें विचार करने लगा, 'जल रहित, कंटकयुक्त, और व्याघ्र समूह से भरा हुआ जंगल अच्छा है, घास पर सोना तथा पेडों की छाल के वस्त्र पहनना अच्छा है, लेकिन सगे संबधियों के बीच निर्धन होकर रहना अच्छा नहीं है.' ___ यह विचार कर वह परदेश चला गया. किसी नगर के नजदीक में स्थित किसी एक सिद्ध पुरुष की सेवा करने लगा, वह सिद्ध पुरुष प्रसन्न हुआ और बोला, : पद्म, तुम इस सिंदूर को ग्रहण करो. यह उत्तम वस्तु है, और सुबह प्रार्थना करने पर पांच सौ सेना महोर देता है. यदि तू किसी के भी सामने यह मैंने दिया है यह मत कहना. याद ऐसा कहेगा तो वह तुरंत मेरे पास लौट आयगा' उसके सामन पद्मने यह मजुर किया, 'मैं किसी से नहीं कहूंगा.' वह पद्म सिंदूर ग्रहण करके वहां से चला और नजदीक के नगर में P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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