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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 483. बोली, 'आप इस का कारण अभी ही जानना चाहते है, पर उसे अभी जानने से आप को ‘मण्डक' की तरह पश्चाताप करना पडेगा-जैसे कि मण्डककी कथा: 'श्रीपुर नामके नगर में गरीब कमल रहता था. वह हमेशा जंगलसे लकडियां लाकर वेचता था. और इस प्रकार दुःखपूर्वक अपना गुजरान करता था. कहा हैं अच्छा कुल, विद्या, शील, शूरता व सुंदरता की परीक्षा कर के जैसे कन्या दी जाती है, वैसे ही विधाता निपुण व्यक्ति को दरिद्रता देता हैं, लक्ष्मीभ्रष्ट पुरुष से रेती और भस्म भी अच्छे है, क्यों कि निर्धन को कभी कोई नहीं पूछता जब कि रेती और भस्म को तो लोग कभी किसी पर्व समय पर पूजते हैं. एकदा वह निधन कमल फिरता फिरता जंगल में गया. वहां एक देव मन्दिर में उसने 'गणपतिजी' की एक काष्टमय बडी मूर्ति को देखा. तब कमलने सोचा, . 'इस मूर्ति के विशाल काष्ठ से मेरा निर्वाह कई दिनों तक चलेगा.' ऐसा दुष्ट विचार कर वह उसे तोडने को तैयार हुआ. अपनी मूर्ति को तोडने के लिये उद्यत कमल को देख कर, गणपति स्वयं प्रकट हुए, और उसे कहा, "तुम मेरी मूर्ति को मत तोडो. तेरी जो इच्छा हो वह मांग लो.' तब कमलने कहा, 'हे गणपनिजी , यदि आप मुझ पर प्रसन्न हुए हों तो मेरी बहुत समय की भूखको अन्न देकर दूर कीजिये.' गणपतिजीने. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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