________________ 482 विक्रम चरित्र यदि तुम इसका कारण नहीं बतलाओगे तो मैं तुम्हारा सांग कुटुम्ब नाश कर दूंगा, इसमें संशय मत करना.' __ यह सुनकर राजपुरोहित मन ही मन दुःखी होता हुआ अपने घर आया, उस समय उसकी बालपांडिता नामक पुत्रीने 'उन्हे देखा तो उसे ज्ञात हुआ, 'निश्चय ही मेरे पिताजी आज उदास मालुम होते है, क्यों कि दुःखसे उनका चहेरा काला सा पड गया हैं. तब उस बालपंडिताने अपने पिता से पूछा, 'हे पिताजी ! आज आप उदास क्यों दिखाई दे रहे है ? ' ' हे पुत्री ! क्या कहूँ ? मैं राजा से पूछे गये प्रश्न का उत्तर न दे सका, क्यों कि मत्स्यहास्य का कारण मुझे मालुम नहीं था.' राजा सन्मुख हुई वह सब बात संक्षिप्त रूपसे उसे कही, तब पुत्री बोली, 'हे पिताजी ! आप खेद न करे, मत्स्यहास्य का कारण राजा के सन्मुख मैं स्वयं कहूंगी' अपनी “पुत्री की बात से प्रसन्न होता हुआ भोजन कर पुरोहित पुनः राजसभा में गया और राजा से कहा, 'मेरी पुत्री आपका मत्स्य के हँसने का कारण बतायगी.' तब राजाने राजपुरोहित की कन्या को मान पुरस्स बुलवायी, और चित्रशाला में बैठा कर वहाँ एक पदों डलवाया पर्दै के पीछे रही हुई उस बालपंडिता को मत्स्य के हसन कारण पूछा, तब पुरोहित पुत्री बोली, 'यह बात आप रानी से ही पूछीथे. क्यों कि मेरी लज्जा मुझे आप से यह बात कहने के लिये रोकती है.' राजा बोला, 'रानी यह नहीं बताती है; अतः यह बात तुम ही कहो.' पुरा म ही कहो.' पुरोहितकन्या P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust