________________ . 480 विक्रम चरित्र शुद्ध कुलवाली और किसी को अशुद्ध कुलवाली कैसे गिन सक्ते है ? यह तो कदापि नहीं कहा जा सकता. नीति में भी कहा हैविष से भी अमृत का लेना, कंचन अपवित्र वस्तु से भी; नीचों से भी उत्तम विद्या; कन्या रत्न कहीं से भी. विष में से भी अमत लेना चाहिये, स्वर्ण गदे द्रव्यो में। पडा हो तो भी ले लेना चाहिये, यदि उत्तम विद्या नीच व्यक्ति के पास होवे तो भी ग्रहण कर लेना चाहिये और कन्या रत्न दुष्कुल में भी होवे तो वहां से ले लेनी चाहिये.” . महाराजाने कहा, मैं तो इस तरह नहीं मानता हु. लोग बोलते है, इस लिये मैं क्या करु ? इस पर देवदमनी आदि रानीयोंने मिल कर राजा को एक कथा कह सुनाई. “एक राजा हमेशा अपनी परमप्रिय स्त्री के हाथसे ही। भोजन करता था, एकदा राजा और रानी साथ ही में भोजन कर रहे थे. उस समय रसोईयेने थाली में पकाया हुआ मत्स्य परोस दिया. यह देख वह रानी भोजन करते. करत एकाएक उठ गई. एकाएक उठने पर राजाने पूछा, 'हे प्रिय तुम उठ क्यों गई ?' तब उसने उत्तर दिया, 'हे राजन् / में आप के सिवा किसी परपुरुप का स्पर्श भी नहीं कर और इस थाली में नर मत्स्य है." . Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.