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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 479 कीया हुआ पुण्य ही है, क्योंकि जिस व्यक्ति के पास अद्रश्य रूप में पुण्यभंडार भरा हुआ है उसको सहजमें ही कार्य सिद्धि प्राप्त होती है उसी तरह इसी प्रकरण में महाराजा विक्रमादित्यने अपनी बुद्धिमत्ता से गूढ - गुप्त समस्या भी सहज में पूर्ण कर दी, और जगत में यश का डंका - बजवा दीया. इसी लिये हरेक प्राणी को चाहिये कि परोपकारी कार्यो में अपनी यथाशक्ति और यथामति प्रयास करते रहना परम जरूरी हैं. . धरम धरम सहु को करे, धरम न जाने कोय. .. ढाई अक्षर धरम का, जाने सो पंडित होय. . अठ्ठावनवाँ-प्रकरण गुलाव में कंटक महोब्बत अच्छी कीजिये, खाइये नागपान; बुरी महोब्बत करके, कटाईये नाक और कान. महाराजा विक्रम का पद्मावती से लग्न होने के बाद वे दोनेा खूब आनंद में दिन बिताने लगे. राजा का अधिकतर समय पद्मावती के साथ ही बीतने लगा. यह देख कर अन्य रानियोंने राजा से कहा, “आप हम सब को समान माने. आप किसी का अधिक सन्मान और किसी का अपमान करें, यह आप के लिये उचित नहीं है." देवदमनी आदि रानियों के इस प्रकार कहने पर भी राजा नहीं माने, तब उन्होने कहा, “आप किसी रानी को P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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