________________ 476 विक्रम चरित्र .. समस्या के इस मनोरम चतुर्थ पद को सुनकर राजाने . बड़ी खुशी से बहुत से लोगों के सन्मुख इस समस्या की पूर्ति / इस प्रकार की- .. - "करि कमलि सरि जनोई, संझा जयइ ब्राह्मणा; कुंवर पोपट इम भणइ, एकल्ली बहुएहिं." . . अर्थात् ब्राह्मण कमलके समान जनोई करके बहुते के साथ * 'संध्या को जीतता है. अर्थात् संध्या पर विजय प्राप्त करता है और उस संध्या द्वारा अनेक प्रकार के पापों को नाश करता है. (उसी तरह श्रावक लोक भी बहुतों के साथ एक प्रतिक्रमणरूप-क्रिया कर के अनेक प्रकारके पापों का नाश करते है.) / तब दूसरी समस्या के इस पद को इस प्रकार कहा" कि कीजइ बहुएहिं." . महाराजाने इस सुंदर चतुर्थ पाद को सुनकर इस समस्या की पूर्ति इस श्लोकद्वारा की- "कूति पांडव जाइआ, गांधारी (शत) सुपुत्र; पाचे सइ जि निरजिआ (ण्य) किं जाए बहुएहि." हाथमें कमडल या कमल-फुल लेकर, शरीर पर जनोई पहनकर . संध्या सब एक ही गायत्री मंत्र का जप अनेक ब्राह्मण लोंक करते हैं। वह गायत्री एक होते हुए भी बहुतों से जपी जाती हैं. उसका मतलब वह हैं कि एक भी बहुतों को पवित्र करती है. यह सुन कर राज. कुमारी प्रसन्न हुई. प्रथम समस्या का दूसरी तरह यह भी भावाथ हा सकता है. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust