________________ 470 विक्रम चरित्र बात को कभी नहीं भूलता था. उसी तोते के साथ साथ पंडित के यहां वह कन्या पढने लगी. कुछ ही समय में वह पदमावती विदुषी बन गई. कहा है- . ... जिस प्रकार पानी में पड़ा हुआ थोडा तैल भी अपने आप ही फैल जाता है, दुष्ट को कही हुई गुप्त बात भी सर्वत्र प्रगट हो जाती है, और सुपात्र को दिया हुआ अल्प दान भी अधिक फल देनेवाला होता है, उसी तरह बुद्धिमान् मनुष्य को प्राप्त शास्त्र भी स्वयं ही विस्तार को प्राप्त हो जाते है, अर्थात् बुद्धिमान अपनी बुद्धि से ही शास्त्रों के अर्थादि विस्तारपूर्वक कह सकता है. .. जब वह तर्फ-न्यायशास्त्र आदि सभी विद्याओ में पारंगता बन गई, तब वह पंडित, राजकन्या व उसके सहपाठी तोते को साथ लेकर राजा के सन्मुख पहूँचा. राजकन्या के विद्या ग्रहण कर उपस्थित होने से राजा बहुत खुश हुआ, और उसने कन्या को अपने पास बिठाया, तदनर अमरसिंह राजाने उस तोते से कहा, " हे शुकराज ! तुम मेरी पुत्री से कोई समस्या पूछो." तब महाराजा तथा पंडितजी के सामने राजकन्या तथा शुकराजने परस्पर व्याकरण, छद, अलंकार, आदि की समस्या पूछी. राजा अपनी पुत्री को विदुषा जानकर बहुत प्रसन्न हुए. कन्या को पूर्ण यौवनावस्था प्राप्त एवं विवाह योग्य जानकर, राजाने शुकराज से पूछा, "ह शुक्रराज! किस भूपति के पुत्ररत्न के साथ इस कन्या का, विवाह करना चाहिए ?" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust