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________________ 468 विक्रम चरित्र आदि तप भी किया करते थे. वे सदा तीन सो नवकार गिनते थे और गुरु का योग होने पर वे गुरुवंदन अवश्य करते थे... - इस प्रकार गुरुदेव श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरजी से कहे गये सारे प्रायश्चित राजाने अंगीकार कर सम्यक् प्रकार से श्री जिनेश्वरदेव के कथित धर्म का पालन करते करते वे क्रमशः स्वर्ग व मोक्ष सुख को प्राप्त करते रहे. जो तीनो लोकका आधार है, समुद्र, मेघ, सूर्य तथा चंद्रादि अपने अपने कर्तव्य बजा रहे है, जिस के प्रसाद से देव, दानव तथा नृपति अपने अपने सुखों को भोगते है, और जिस के आदेश से ही चितामणी, कामधेनु, तथा कल्पवृक्ष आदि फल देते है, वह श्रीमज्जिनेंद्र प्रणीत धर्म (जैनधर्म) आप की शाश्वत कल्याण लक्ष्मी को कुशल रक्खे. ॐ इस प्रकार विक्रमादित्य महाराजा जीवदया धर्म का पालन करते थे, वे स्वयं तो पालन करते ही थे पर उनको देखने से अन्य लोग भी जीवदया पालन में तत्पर रहते थे. कहा है, " यथा राजा तथा प्रजा." अतः प्रजा भी उस का अनुकरण करती थी. लोग भी यथाविहित धर्म करते हुए सु * आधारो यस्त्रिलोक्या जलधिजलधराकेन्दवो यन्नियोज्या, भुज्यन्ते यत्प्रसादाद रसुरनराधीश्वरः संपदस्ताः; आदेश्या यस्य चिन्तामणिसुरसुरभिकल्पवल्यादयस्ते, श्री मज्जैनेन्द्रधर्मः कुशलयतु स वः शाश्वती शम लक्ष्मीम् / / // स. 11)54 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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