________________ विक्रम चरित्र करते हैं, तथा विश्वास रखने लायक नहीं होते, ऐसे पुरुष मर .. कर स्त्री बनते है, लेकिन जो स्त्री संतोषवाली, सुविनीत, सरल स्वभावी होती है, तथा हमेशा शांत, स्थिर व सत्य बोलनेवाली होती है, वह मर कर पुरुष रूप में उत्पन्न होती है. दुर्वचनरूपशल्य को दूर करने की इच्छावाला वैरागी और संसार से उद्विग्न, अत्यंत श्रद्धावान जीव शुद्ध हेतुपूर्वक जो आलोचना करता है, वह जीव आराधक कहलाता है. ' गूढ, अतिगूढ या तत्काल सुखदायक जो जो अशुभ कर्म या पाप किये हुए है, उन सब को गुरुदेव के सन्मुख प्रकाशित कर उन की निन्दा व गर्दा अन्य के पास प्रगट करने से प्राणी उन सभी पापा से मुक्त हो जाता है. भव्यात्मा-पुरुष अपने 'एक जन्म के किये गये हुए पापों की आलोचना लेकर अनन्त - "भवो द्वारा उत्पन्न हुए पापो को भी अनायास ही नाश कर देता है. आलोचना मुक्तिसुख की परंपरा प्रदान करती हे," - महाराजा विक्रमने आलोचना के इन फलों को गुरुदेव के मुख से सुन कर भक्तिभावयुक्त हो उन्होंने सम्यक् आला चना ली, अर्थात् गुरुदेव के सन्मुख अपने पापों को कह कर उनका प्रायश्चित पूछा, गुरुदेवने भी विक्रमराजा के मुख स "उसके किये हुए पापो को सुन कर उस की विशुद्धि करने / लिये उन अपराधानुसार प्रायश्चित बतलाया. उसे सह स्वीकार कर महाराजाने भी अनेक धर्मकृत्य करके, अपने पा का उन्मूलन किया. . Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.