________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 465 श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरजीने पूर्वजन्म का वृत्तान्त पूर्ण कर आगे कहा, "हे राजन् ! प्राणी जो पाप कर्म करते है उन पापों का बिना पश्चाताप व प्रायश्चित किये छुटकारा नहीं हो सकता." गुरुदेव द्वारा प्रायश्चित लेने की आवश्यकता बताई: सिद्धसेन गुरुने बतलाया, पाप छिपाया नहीं करो; पापालोचनसे होता है, दुःख दूर यह मनमें धरो. शास्त्रों में कहा भी है, " किये गये पापों की आलो-- चना गुरु के पास करनी चाहिए.' मनमें अलोचना लेनेकी धारणा करके गुरु के पास जा रहा हो, और यदि रास्ते चलते कदाचित् मृत्यु हो जाय तब भी वह-जीव आराधक ही कहलायेगा.x शरीर द्वारा जीवहिं सादि पाप लगे हो उनका कायासे तपश्या, काउसग्ग आदि अनुष्ठान द्वारा प्रतिक्रमण करना,, वचन द्वारा कर्कश शब्दादिसे जो पाप हुए हो, उन का वचन से मिच्छामिदुक्कड देकर प्रतिक्रमण करना, मन द्वारा संदेहादि से जो पाप बंधा हुआ हो, उस का मन से प्रायश्चित कर के प्रतिक्रमण करना. इस प्रकार सभी पापों का प्रतिक्रमण करना चाहिए. चपल स्वभाव के लोग माया, कपट, परवंचना, x आलोअणापरिणआ सम्म संपड़िओ गुरुसगासे / जई अंतरावि काल.करिज्ज आराहओ तहवि // स. 11/35 // . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. dun Gun Aaradhak Trust