________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविय संयोजित व्यापारी के बीच कलह उत्पन्न हुआ, फल स्वरूप वीर की दृढ मुष्टि के प्रहार-आघात से चंद्र का उसी समय मृत्यु हो गई, वह चंद्र का जीव मर कर तूं राजा हुआ है. राम और भीम भी समय बितने पर, वहां से मृत्यु को. प्राप्त हुए, और वे दोनों मर कर भट्टमात्र तथा अग्निवेतालके रूप में उत्पन्न हुए, अतः वे तुम्हारे पूर्व भव के संबंध से प्रीतिपात्र मित्रवर बने, तुम्हे मारने वाला वह वीर व्यापारी मर कर अज्ञानमय सप के प्रभाव से यहां खर्पर चोर के रूप में उत्पन्न हुआ था. जो देवताओं से भी दुर्दमनीय रहा. . . . हे राजन् ! पूर्व कर्म के परिणाम स्वरूपमय खर्पर चार तुम्हारे द्वारा मारा गया और पुनः दूसरी नरक में गया. कहा है, "कर्म का फल, इस लोक में जो कर्म किया जाता उसी का परलोक में मिलता है. क्यों कि वृक्ष के मूल में पानी देने से ही शाखाओं में फल लगते है. किया हुआ कर्म सौ करोड कल्प के बीत जाने पर भी नष्ट नहीं होता, और किये गये शुभ या अशुभ कर्मों का फल जीव को अवश्य . भोगना ही पड़ता है. कर्म ऐसा बलवान है कि, उस ने किसी को नहीं छोडा. जिस कम ने ब्रह्मा को ब्रह्माण्डरूप भाण्ड-बरतन बनाने के लिये कुंभार के रूप में नियुक्त किया, जिस कर्मने शिवजी को अपने हाथो में कपाल याने खप्पर लेकर भिक्षाटन करने को मजबूर किया, जिस कर्म के कारण विष्णु दशावतार के गहन P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust