________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय सयोजित मंत्री भट्टमात्र की छ मास सेवा करने पर वह राजाजीसे मिलायेगा, उस बात की उपेक्षा कर सिधा ही राजद्वार में प्रवेश करना, उन के तेजप्रभाव देख, महाराजा द्वारा बहुमान होना. उतारा के लिये आदेश करना, द्वारपाल द्वारा अग्निवैताल राक्षस का मदिर बताना, वहांसे रूपचंद्र द्वारा उस वैताल को वश में करना, उस पर सवार होकर राजसभा में जाना, महाराजा विक्रम का उनकी इस प्रकार की वीरता देख अत्यन्त प्रसन्न होना, राज्य अधिष्ठायिका देवी तथा विक्रमादित्य द्वारा की गई परीक्षा में उत्तीर्ण होना अघटकुमार के नाम से संबोधित करना, इत्यादि विवेचन आपने इस प्रकरण में पढा. अब आगे का रहस्यपूर्ण महाराजा का पूर्व---भवा दि वृतान्त अग्यारवें सर्ग से पढियेगा। / तपागच्छीय-नानाग्रंथ रचयिता कृष्णसरस्वती बिरुदधारक परमपूज्य-आचार्य श्री मुनिसुंदरसूरीश्वर शिष्य पंडितवर्य श्रीशुभशीलगणिविरचितेविक्रमादित्यचरितेसौभाग्यसुंदरी :परिणयनतत्परीक्षाकरणाद्य घटकुमार मिलनस्वरूपो दशमः सर्ग समाप्तः नानातीर्थीद्धारक-आचाल ब्रह्मचारि-शासनसम्राट श्रीमद् विजयनेमिसूरीश्वर शिष्य कविरत्न शास्त्रविशारद-पीयूषपाणि-जैनाचार्यश्रीमद् विजयामृतसूरीश्वरस्य तृतीयशिष्यः वैयावच्चकरणदक्ष मुनिवर्य श्रीखान्तिविजयस्तस्य शिष्य मुनि निरंजनविजयेन कृतो विक्रम चरितस्य हिन्दी भाषायां भावानुवादः तस्य च दशमः सर्ग समाप्तः P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust