________________ 454 विक्रम चरित्र प्रसन्न हुए. कुछ दिन के बाद महोत्सव के साथ रूपचंद को राजगादी दे दी गई. इस प्रकार महापराक्रमी अघट भूपति न्याय नीति से राम की तरह प्रजा का पालन करने लगा. रूपचंद्र को राज्य की प्राप्ति की खबर सुन कर विक्रमादित्य बहुत प्रसन्न हुए. विक्रमादित्य और अघट में दिनानुदिन परस्पर प्रेम बढने लगा. समय समय पर अघट राजा विक्रम के यहां आकर सूक्तिया सुन तथा सुनाकर अपने जीवन को आनंदमग्न करता था. कहा भी है. नीति तथा उपदेशात्मक वाक्यों का रसास्वादन करता हुआ पुलकित शरीरवाला कवि, कामिनी के बिना भी सुख प्राप्ति करता है.x इस तरह से और भी कितने-भट्टमात्रादि महामंत्री विक्रमादित्य के प्रख्यात यशस्वी सेवक हुए. गुणवन्ता गंभीर नर दयावान दातार अंतकाल तक न तजे धैर्य धर्म उपकार." प्रिय पाठकगण ! अघटकुमार-रूपचंद्र का श्रीद् श्रेष्ठी के वहां ठहरना उस से विना मादित्य के मिलने का उपाय पूछना, उस के बताये गये उपाय जा महा विनाऽपि कामिनीसंग कवयः सुखमासते / / स. 10/661 / / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust