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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 453 बुलवाया. अपनी प्रिया पद्मा के साथ अघट को राज दरबार में जाते देख कर लोग आपस में कहने लगे, “देखो ने उसने आते ही राजा को अपने वश में कर लिया, महाराजा इसका कितना सन्मान करते है. अपने महल में भी बुलवाने लगे." अघटकुमार अब महाराजा के पास गया तो राजाने प्रेम से पूछा, “हे अघटकुमार, तुम्हारे कोई संतान है, या नहीं ? " अघटने कहा, " हे महाराज ! एक छोटा सा पुत्र है." राजाने पूछा, "वह कहां है ? " अघटने कहा, “वह अभी ननिहाल-मामा के घर पर हैं.' इस तरह छिपाते छिपाते अन्त में राजा से अघटने सत्य बात बता दी, "मेरा एक पुत्र था, उसे मैंने महाराजा की शान्ति के लिये देवी को बलि चढा दी." राजाने रात का सम्पूर्ण वृत्तान्त मंत्रियों तथा सभासदों को कहा. सुन कर उस अघट-रुपचंद्र को सभीने गले लगाया, और वह बालक जिसे अघटने रात में देवी को बलि दे डाली थी, सन्मानपूर्वक दे दिया. राजाने रूपचन्द्र को इस राजभक्ति तथा बहादुरी के लिये सन्मान किया, और ग्राम की जागीरी आदि उन्हे भेट / में दी. अब वह रूपचंद्र सुखी हो गया. विक्रमादित्यने उस से माता पिता के नाम ग्रामादि प्रेम से पूछा रूपचंद्गने अपनी सारी कहानी कह सुनाई. फिर बहुत सन्मान के साथ रूपचंद्ग को अपनी राजधानी में पहूँचाया गया, इसके पिता अपने पुत्र के पराक्रम को सुन कर तथा लक्ष्मीसंचय को देख बहुत P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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