________________ 452 विक्रम चरित्र वर मांग कर सुखी रहो.” - लंका पर विजय प्राप्त करनी थी, समुद्र में बाँध बाँध कर पैर से चलकर पार करना था. रावण जैसा दुर्जेय शत्रु था, सहायक दुर्वल वानर थे, फिर भी रामने लडाई में सारे राक्षस वंश का नाश कर डाला. इस से यही जान पडता हैं कि, महान पुरुषो के कार्यो की सिद्धि उनके पुरुषार्थ और सत्व से ही प्राप्त होती है. वस्तु संपत्ति या साधन से नही.x शुभ कार्यों में महान् पुरुषों को भी अनेक विघ्न आते है, और अशुभ कार्य में प्रवृत्त होने पर तो शायद ही कोई विघ्न आ सकता है.. __राजा विक्रमने कहा, "हे देवी! यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो सर्व प्रथम अघटकुमार के पुत्र को जीवित कीजिये." देवी ने कहा, "हे राजन् ! अघटकुमार के पुत्र को मैं जीवित कर देती हुँ-लो.” विक्रमादित्य अघटकुमार के उस जीवित पुत्र को लेकर अपने महलमें आए. बच्चेको सुरक्षित स्थान में रख कर-छुपा कर सो गए. प्रातःकाल ही पद्मा सहित अघट को अपने महल में 4 विजेतव्या लङकाचरणतरणियो जलनिधिविपक्ष: पौलास्त्यो रणभुवि सहायाश्च कपयः / तथाऽप्याजौरामः सकलमवधीद्राक्षसकुल .. क्रियासिद्धिः सत्वे भवति महतां नोपकरणे // स. 10/648 // Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.