________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 451 ___ इधर राजा विक्रम भी छिपकर सब देख रहे थे. क्यों कि अघट की परीक्षा करने के लिए ही तो राजाने आधी रात में भेजा था. विक्रमादित्य अघट के साहस, राजभक्ति तथा त्याग को देख कर मन ही मन उसे धन्यवाद देते हुए उसी पेड़ के नीचे जाकर राजदेवीको संबोध कर तलवार से अपना शिर काटने के लिये तैयार हो गए. . TSca ल -1 महाराजा विक्रम और राजदेवी. चित्र नं. 21 ज्यों ही विक्रमादित्यने अपना शिर काटने के लिये तलवार उठाई कि, देवी प्रत्यक्ष होकर बोलने लगी, " हे वीर, भप ! तुम बड़े साहसी, दानवीर और बुद्धिमान हो, तुम अपना शिर मत काटो, मैं तुम पर प्रसन्न हूँ. तुम अपनी इच्छा से P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust