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________________ 450 विक्रम चरित्र महल के कुछ दूर से रोनेकी आवाज आई. राजाने कहा, "हे अघट ! देखो तो इस मध्यरात्रि में कौन, कहाँ, क्यों रो रहा है ?" अघट उस आवाज की दिशा में चला. आगे चल कर देखा तो एक स्त्री पीपल के पेड पर रो रही थी. अघटने पूछा, “हे देवी! तुम कौन हो? क्यों रो रही हो?" उस स्त्रीने उत्तर दिया, "मैं इस राज्य की अधिष्ठात्री देवी राजलक्ष्मी हूँ, कल राजा विक्रम मर जायगा, तब मेरा क्या होगा? इस लिये रो रही हु." .. अघटने पूछा, " हे देवी, राजा विक्रम दीर्घायु बन सके इस का कोई उपाय है ? " राजदेवी ने कहा, " यदि तुम अपने पुत्र की बलि मुझे दो तो इस अनर्थ की शांति हो सकती है. इस का और कोई दूसरा रास्ता नहीं हैं.' सुनते ही अघट अपने घर गया और स्त्री को जगा कर उस से पूछा, “हे प्रिये ! राजयक्ति की परीक्षा हैं; तुम्हारा क्या विचार है ?" अघटने देवी से कही गई सारी बातें सुना दी. पद्माने साहसके साथ कहा, "हे प्राणनाथ ! मुझे अपने पुत्र की बलि देने से महाराजा को शांति प्राप्त होती हो तो मैं ऐसा करने के लिये तैयार हूँ.” अपनी प्रिया की साहस भरी वाणी सुन कर, उस के पास से अघटने अपने पुत्र को ले लिया, और उस पेड़ के नीचे आकर खुशी से अपने पुत्रका बलि दी. देवी को पुत्र की बलि दे देने के बाद अघट अपने घर चला गया. Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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