________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित .. इधर अग्निवैताल से रूपचंद जो कुछ भी कहता था, उसे वह शीघ्र ही कर दिखाता था, क्यों कि वनका राजा जो सिंह उसका न कोई अभिषेक करता है, न कोई उस को संस्कार-शिक्षा पढाता है, न कोई चुनाव आदि करते है, फिर भी अपने पराक्रम से ही संपूर्ण जगल का राजा बन कर, सिंह मृगेन्द्र की पदवी को स्वयं प्राप्त करता हैं.'x . . "उद्यम साहस धैर्य बल बुद्धि पराक्रम जिसके; __ ये षड्गुण रहते है सन्मुख भाग्य सहायक उसके." उद्यम, साहस, धर्य, बुद्धि, बल और पराक्रम-वीरता आदि गुण जिन व्यक्ति में होते हैं, भाग्य भी उसी का सहायक होता है. . महाराजा विक्रमादित्यने अघटकुमार को अपना अंगरक्षक-बोडीगार्ड बना लिया. राजदेवी द्वारा विक्रम तथा अघट की परीक्षा" लगी राजदेवी लेने जब विक्रम अघट परीक्षा: साहस परिचय दे उन्होंने पूरी की निज इच्छा." शान्तिपूर्वक राज्य कार्य चल रहा था. सब शान्त और प्रसन्नचित होकर अपना अपना कार्य कर रहे थे. एक रात * नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते मृगैः / विक्रमाजितसत्त्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता / / स. 10/634 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust