________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 445 शीर्वाद दिया है, अतः मुझ पर कोई आपत्ति न आए ऐसः आप को करना चाहिए. क्यों कि"एक बार ही राजा बोले, साधु पुरुष बोले एक बार, कन्या एक बार दी जाती, ये तीनो नहीं बारम्बार."* राजा तथा साधु पुरुष एक ही बार बोलते है, अर्थात् जो कुछ कहना या करना होता है, उसे प्रथम बार में ही कह या कर डालते है, कन्यादान भी एक ही बार होता है, ये तीनों बाते वारंवार नहीं होती." इस प्रकार से अग्निवैताल के विनय प्रार्थना करने पर पद्माने कहा, " अच्छी बात है, तुम इस कडाह के नीचे छिप जाओ, मैं तुम्हे अपनी बुद्धि के प्रभाव से बचा लूंगी." . पद्मा की बातों पर विश्वास रखकर अग्निवैताल शीघ्र ही कडाह के नीचे छिप गया. ठीक उसी समय रूपचंद्र बाहर से आया. पद्माने घरसे वाहर आकर रूपचंद्रसे एकान्त में सारी घटना कह सुनाई. रूपचंद्र जानबूझ कर ऊँचे स्वर से बोलने लगा, “देखो! वह अग्निवैताल अवश्य यहां आया हुआ है, कहाँ ठहरा है ? शीघ्र बताओ." ‘पद्माने कहा, "हे प्राणनाथ ! वह तो आकर इसी * सकृज्जल्पन्ति राजानः सकृज्जल्पन्ति साधवः .. सकृत्कन्याः प्रदीयन्ते त्रीण्येतानि सकृत् सकृत् // स. 10/139 // 'P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust