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________________ 442 विक्रम चरित्र राजा विक्रम से जो सोने की अशर्फिया मिली थी उन में से बाटते बाटते केवल दो अशर्फिया पास रही थी. रूपचंदने दोनो अशर्फिया अपनी पत्नी को दे दी. उसकी पत्नीने भी स्वाभाविक उदारता से दोनो गिन्नियां उस सेठजी की पुत्रवध को दे दी. श्रीद् सेठजी के हृदय में इस बात की चिन्ता होने लगी, 'इस विचारे पथिक की जान खतरे में पड गई.' किन्तु वीर रूपचंद्रने साहस कर श्रीद सेठजी से कहा, "आप इस लिए चिन्ता मत कीजिये, मेरा सब कुछ अच्छा मंगलकारक होगा. आप प्रसन्नता से मुझे जाने की आज्ञा दीजिये." श्रीद सेठजीसे दी गई घोडी पर चढकर प्रसन्नतापूर्वक अपनी पत्नी और पुत्र के साथ अग्निवैतालवाले घर में आ पहूँचा. रास्ते में लोग बोल रहे थे, "हा, यह बेचारा महान अनर्थ में फंसाया गया, यह अग्निवैताल के मकान में कसे रहेगा ?" . उस घर में पहूँचते ही उसकी पत्नीने कहा, "हे पतिदेव ! घर में बहुत कचरा पडा है, इस की सफाई कराने बाद यह घर रहने योग्य होगा.” उस मकान की सफाई करने लिए मजदूर की आवयश्क्ता थी, ढुंढने पर भी पास में कोई मजदूर न मिला, इसी लिए पत्नी को उसी घर में रख कर वह मजदूर की खोज करने नगर में गया. उस की पत्नी अपने प्यारे पुत्र को पालने में मुलाकर झुलाती हुई गाने लगी, "अरे पुत्र, तू रोता क्यों / देख, जभो तेरे पिताजी तेरे खेलने के लिये अग्निकों' का 1 एक प्रकार की चिडियां या एक प्रकार का खिलौना. P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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