________________ 440 विक्रम चरित्र - प्राप्त करें तो बाद में महामंत्री उस को महाराजा विक्रमा दित्य के पास ले जाता है, और उसको महाराजा की सेवा प्राप्त होती है." सेठजी का कथन सुनकर रूपचंद्रने मन ही मन कुछ सोच विचार कर, आज ही राजदरबार में जाने का निश्चय किया. महाराजा के आगे उपहार करने योग्य फलफलादि सामग्री लेकर रूपचंद्र राजदरबार की ओर चला. रूपचंद्र राजसभा के द्वार पर आया और जब प्रवेश करने लगा, तो द्वारपालने उसे रोका, द्वारपाल को एक चपेटा मारकर जमीन पर गिरा दिया, और शीघ्र आगे बढा. बड़ी अदरसे चलता हुआ निर्भयतापूर्वक गजसभाके बीचमें होता हुआ रूपचंद्र महाराजा के आगे आकर खड़ा हुआ. महाराजाने उस की ओर देखा तो रूपचंद्रने शीघ्र ही अपने हाथ में का फलफलादि सामग्री महाराजा के चरणों में रख कर, विनय सहित नमस्कार कर अपने उचित स्थान पर खड़ा हो गया. प्रभावशाली चहेरा और मनोहर रूप देख महाराजा उस के प्रति आकर्षित हो गये; रूपचंद्रने बड़े विनय सहित महाराजा से कुछ बातचीत की. उसकी वचन, चतुराई, विनय एवं बार्तालाप करने की रीति नीति दे प्रसन्न होकर महाराजाने रूपचंद्र को दश हजार सोना महोरे देकर, भट्ट मात्र के प्रति कहा, " आप इस आगन्तुक के लिये रहने का सब प्रबंध कर दीजिये." P.P. Ac. Gunfatnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust