________________ पचावनवाँ-प्रकरण रूपचन्द्र की सत्त्व परीक्षा " उदारता धनकी करे, एसा लाखो लोक; टाणे शिर आगल करे, एसा विरला कोक, करे कष्ट में पाडने, दुर्जन कोटी उपाय; पुन्यवंत को वे सब, सुख के कारण होय." श्रीद श्रेष्ठी के घर में राजकुमार रूपचन्द्रने अपने पुत्र और पत्नी सहित आनंद से रात्रि बिताई, प्रभात होते ही निद्रा त्याग सब जागृत हुए. जब की ये स्नान आदि नित्य क्रिया निमाटा कर स्वस्थ हुए, तब प्रसन्न होकर श्रेष्ठीने रूपचन्द्र की पत्नी को बहु मूल्यवाली एक सुंदर साडी भेट दी, और रूपचन्द्र के लिये एक श्रेष्ट घोडी उपहार में भेट दी. इस प्रकार सेठजी श्रीद् और राजकुमार रूपचन्द्र का आपस आपस में स्नेहसंबंध दृढ बना. रूपचन्द्रने विनयपूर्वक श्रीद् सेठजी से पूछा, " हे सेठजी ! आप यह बतलाईये कि, मैं महाराजा विक्रमादित्य के दरबार में कैसे प्रवेश कर सकता हूँ? और महाराजा की सेवा किस तरह करूँ ?" ____ उत्तर में श्रीद् सेठजीने कहा, "जो मनुष्य महामंत्री भट्टमात्र की छ मास तक नित्य सेवा करके यदि उनकी प्रसन्नता P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust