________________ 438 विक्रम चरित्र - - प्यारे पुत्र के वीरतापूर्ण कार्य से प्रजा का भयमुक्त करने का प्रसंग देख बड़ा उत्सव मनाकर पुत्र को सम्मानीत किया, किन्तु सुमति-मंत्रीश्वर के. विचारानुसार अपने विचार बदल कर, राजकुमार को कुछ कड़े शब्दों से उपालभ दिया. राजकुमार उसको अपमान समझकर किसी को कहे विन! ही अपनी पत्नी को लेकर परदेश की ओर प्रस्थान कर दिया. क्योंकि उत्तम स्वभाववाल व्यक्ति अपना मानभंग कभी सह नहीं सकते है. फिरते फिरते एकदा उसका अवन्ती में आगमन हुआ, अब उसके बाद राजकुमार का महाराजा विक्रमादित्य से किस तरह समागम होता है, और आगे का जीवन कीस तरह बितता है, ये सब आपको अगले प्रकरण में बताया जायगा. - गतिमस्वामिजीहत चोवोशी घंटाकर्ण, अमारा नया प्रकाशन श्री जिनेन्द्र दर्शन चोविशी तथा अनानुपूर्वी . संपूर्ण शास्त्रिय दृष्टिसे परिकर सहित चोवोश श्री तीर्थकर भगवान तथा श्री गौतमस्वामिजी, श्री सिद्धचक्रजी, वीशस्थानक, घंटाकर्ण, मणीभद्र, पद्मावतीदेवी, चक्रेश्वरीदेवी एवं अंबिकादेवी आदिके पचरंगी सुंदर चित्रो सहित उच्चे आर्ट पेपर पर सुंदर आकर्षक छपाई हुई किंमत 1-8-0 अधिक कोपीयाँ साथ में ले लेने वाले को योग्य कमिशन दिया जायगा. - एक नकल नमूने के लिये मगावकर देखोः जैन प्रकाशन भन्दिर . टि. 309/4 डोशीबाडाकी पोल, अहमदाबाद. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust