________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 437 उतने दिन आप यहां मेरे घर रहिये." सेठजी के आग्रह को मान कर स्त्री सहित रूपचन्द्र भोजन कर रातभर वहाँ ही ठहर गया. रात्रि में सोये हुए राजकुमार को देख कर सेटजी के मनमें एक सन्देह उत्पन्न हुआ, उसने पास में सोये हुए अपने नौकर को धीरे स्वर से कहा, 'कहीं यह परदेशी रात्रि में चोरी तो नहीं कर जायगा ? ' कुमार की पत्नीने उपरोक्त बात सुन कर कहा, 'सेठजी! आप का ऐसा सोचना ठीक नहीं है, मेरे स्वामी वीरवृत्ति से कमाकर खानेवाले है, पर चोरी आदि नीच कम वे कभी नहीं करेगें, आप निर्भय रहे. क्यों कि "भूखा और दुबला जरासे जर्जरित, सिंह क्या घास कभी खाता है ? महापुरुष अपनी मान मर्यादा का, कभी उलंघन नहीं करतें हैं." इस प्रकार रूपचन्द्र की पत्नी का कथन सुन सेठजी बहुत प्रसन्न हुआ, और रूपचन्द्र तथा सेठजीने परस्पर नाना प्रकार की बड़ी रात तक बातें निर्भय हो करके की और सब आनंद से सो गये. पाठकगण ! आपने इस प्रकरण में चन्द्रसेन कोटवाल का एक प्रसंग और राजकुमार रूपचन्द्र का रसमय स्वरूप पढा, भीमराजाने प्रथम अपने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust