________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 435 प्रिय वस्तुओं के वियोग या नाश होने से हरेक प्राणी को दुःख होता हैं.” सुमति-मंत्रीश्वर के उपरोक्त ये युक्ति युक्त वचन भीमराजा को उचित लगे, और मंत्रीश्वर का नहीं आने का रहस्य भी समझमें आ गया, बाद में एक दिन भीमराजाने राजकुमार को उन शब्दों के द्वारा उपालंभ दिया, 'जैसे कुपुत्र से युक्त कुल, अन्याय से उपार्जित धन और रोगों से घेरा हुआ शरीर ये बहुत दिनों तक नहीं रहते हैं.' . भीमराजा से अपमानीत होकर राजकुमार मन ही मन बहुत दुःखी हुआ, और मनमें सोचने लगा, 'अधम मनुष्य. धन चाहते हैं, मध्यम मनुष्य धन और मान दोनों को चाहते है किन्तु उत्तम मनुष्य तो केवल मान ही की इच्छा रखते है.' अपनी प्रतिष्ठा की महत्वता को समजनेवाला राजकुमारने अपनी स्त्री को साथ लेकर और किसी को कुछ कहे सुने बिना ही रात्रि में घर से देशान्तर जाने के लिये प्रस्थान कर दिया. राजकुमार और उसकी पत्नी चलते चलते वीरपुर से बहुत दूर निकल चूके थे, रास्ते में राजकुमार की पत्नीने शुभ मुहुर्त में सूर्य समान तेजस्वी पुत्ररत्न को जन्म दिया. क्रमशः घूमते घूमते अनेक छोटे बड़े गाम, नगर और वनों को उल धन करते करते रूपचन्द्रकुमार अपने पुत्र और पत्नी सहित अवतीपुरी में आ पहुँचा. रूपचन्द्र पुत्र सहित अपनी पत्नी को बाजार में 'श्रीद् ' नामके श्रेष्ठी की दूकान के बगल P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust