________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय सयोजित 431 शायद कभी घटित हो जाय, किन्तु मनुष्य के भाग्य में लिखी हुई शुभाशुभ कर्म रेखा कभी भी मिथ्या नहीं हो सकती." ॐ ... तब राजाने उस ब्राहमण को कल के लिये सत्यासत्य का निर्णय होने तक अपने राजमहल में अपनी पास ही रक्खा , और गजराज की रक्षा के लिये सैनिको को नियुक्त कर दिया. इतना प्रबन्ध होने पर भी भावि को कोई नहीं रोक सकता. इस युस्ति के अनुसार प्रभात होते होते तो वह पट्ट हस्ती मद से पागल हो गया. पांवमें बंधी जंजीर-सांकल को तोड़कर नगर में जा, प्रजा के घर-द्वार को भग्न करता सम्पूर्ण शहर में उन्मत होकर फिरने लगा. प्रजा-लोगों में घबराइट मच गई. मेरु पर्वत से मंथने पर समुद्र का जल जैसे क्षुब्ध हुआ था. ठीक उसी तरह-वही दशा इस हाथीने आज सारे हो शहर की कर दी. उस मदोन्मत हाथी के पास जाने की कोई हिम्मत नहीं करता था, इस उपद्रवी हाथीने एकाएक कृष्ण पाहूमण की स्त्री को अपनी सूंड से पकड़ लिया, और ऊपर उठा कर आकाश में चिघाड़ने-उछालने लगा. इस बात से राजा और सारी प्रजा में हाहाकार मच * प्रचलित यदि मेहः शिततां याति वह्नि,रुदयति यदि भानुः पश्चिमायां दिशायाम् ; विकसति यदि पद्म पर्वताप्रे शिलायां, तदपि च न हि मिथ्या भाविनी कर्म रेखा / / स.१०/५४३ // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust