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________________ 430 विक्रम चरित्र मिलना हो गया, रात्रि में मृगावती के दिये हुए पान चबाने से रक्त दन्तवाला उस ब्राहमण को देख कर चंद्रसेनने कहा, "आज आप बहुत प्रसन्न मालुम होते हो ?" तब उसने उत्तर में कहा, "सब आप की कृपा है ?" चंद्रसेनने कहा, " आन आप राजसभा में अवश्य पधारना, वहां मैं राजाजी से आप को कुछ धन दिलवाऊँगा." - भोजन आदि से निवृत होकर उचित समय पर उसने दरबार में पहूँच कर राजा को सुंदर शब्दो से आशीर्वाद सुनाया. उसी समय अवसर पाकर चंद्रसेनने कहा, “महाराज! ये विप्रदेव अच्छे विद्वान है, लग्न आदि देख कर भूत, भविष्य और वर्तमान की सभी बातें बतला देते है." . राजाने पूछा, “अच्छा-कहिये विप्रदेव ! कल मेरे राज्य में क्या होगा ?" तब उस जोषीने शीघ्र ही प्रश्नलग्न देख उत्तर दिया, " कल आपका पट्ट हस्ती मर जायगा.” इस बात को सुन कर राजाने कहा, “क्या इसके लिये कुछ शान्ति 'का उपाय करना ठीक होगा ?" ब्राहूमणने कहा, " राजन् ! भावी को कोई नहीं रोक सकता, जो होनहार है, वह होकर ही रहता है." क्यों कि .. “मेरु पर्वत कभी चलायमान हो जाय, अग्नि कभी ठन्डी हो जाय, मानो कभी पश्चिम दिशा में सूर्य उदित हो जायें-पवत के शिखर पर कमल खिल जाय, ये सब असम्भव घटनाये P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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