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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित . 423 -- . हार्दिक प्रशंसा कर दोनों से प्रेमपूर्वक मिलकर महाराजा विक्रमने अपनी अवंतीपुरी की ओर प्रस्थान किया. अपने स्थानको आकर .. राज्य कारभार संभाला, प्रिय पाठकगण ! आपने इस प्रकरणमें गगनधलीने अपनी स्त्री से सावीज प्राप्त करना तथा उसमें के पत्राधारसे अखुट धनमाल प्राप्त करना, पश्चात् अपने ससुराल में जाना, वहाँ अपनी स्त्रो से उदासीन रहना, स्त्री का / पांव दवाने को आना, और कल्लित स्वप्न की बात बीसे गगनधली द्वारा कहना, उसे सुनकर उसकी स्त्रीका एकाएक हृदय फट कर देहान्त हो जाना. . पश्चात् गगनधली को घर जाते समय पत्नी की छोटी यहन-साली-सुरु पाने आकर, अपने को अपनाने की अत्यन्त आग्रह सहित प्रार्थना करके कहा, - "मेरी पहनाई हुइ यह वरमाला यदि कभी भी कुमला-शुष्क हो जाथ तो, समजना कि मेरा शील कुछ मलिन हुआ है." ऐसा आग्रह करने / पर गगनधलीने सुरु पा का स्वीकार करना, उस विकसित पुष्पमाला को गगनधली के कंठ में देख विक्रम महाराजा का पूछना. गगनधली का - अपनी स्त्री का शील महिमा बताना, उस बात का महाराजा द्वारा अस्वी कार करना, और परीक्षार्थ अपने सेवक मूलदेवादि को भेजना, उसमें भी सफलता न मिलने पर, स्वय विक्रम का गगनधली के साथ उसके घर _____ पर पहूँचना, वहां उसका यथाशक्ति शील, गुण देख, उनकी सीमातीत - प्रशंसा करना और वापस महाराज का स्वदेश लौटकर राजकार्य संभालना - इत्यादि विवरण पढा अब अगले प्रकरण में स्वामीभक्त अघटकुमारका अद्भुत रोमांचकारी रसमय वृत्तांत पढने मिलेगा. ". संत वचन बरसे सुधा, श्रोता कुंभ-समान / ढका मोह का. ढकना, पडे न घटमे ज्ञान. " P.P.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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