________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 421 . बार बार महाराजा द्वारा भोजन सामग्री मांगने पर अन्दर से आवाज आया, “क्या भोजन तेरा बाप देगा ! मैं कहां से लाऊँ ? " पेटी के अंदर से मूलदेव और शशीभृतने कहा, "हे राजन् ! सुरुपाने हम दोनों का और एक वृद्धा को इस पेटी में बन्द कर रक्खा हैं." महाराजा विक्रमने पेटी में रहे हुए, उन परिचित व्यक्ति के शब्दों को सुन कर उस पेटी को खुलवाया, तो अन्दर से अपने प्यारे दोनों सेवक मूलदेव व शशीभूत और एक वृद्धा को अति कृश शरीर व दुर्बल दुःखी रूपमें पाया. - मन में लज्जित होते हुए मूलदेवादि ने बहुत दीन स्वरसे आदि से अन्त तक का अर्थात् खड्डे में गिरने से लेकर आज तक का सारा वृत्तान्त कहा और बोले, “हे राजन् ! क्या कहें, हमारी की हुई प्रपंच जाल में हम-ही फंस पडे." यह सुन महाराजा ताज्जुब हो गये. ___महाराजा विक्रम सुरुपा के चरित्र पर आश्चर्य करते हुए अत्यन्त प्रसन्न हुए. गगनधूली को वहां बुलाकर कहा; "हे वणिक ! तुम धन्य हो और बहुत भाग्यवान हो, क्योंकि तेरी पत्नी जैसी पतिव्रता स्त्री हमने अभीतक कहीं नहीं देखी, तुमने अपनी पत्नी के लिये पूर्व मेरे पास जो कुछ भी कहा था, वह सब सर्वथा सत्य है, और सचमुच वह बड़ी ही पवित्र है. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust