________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित . 419 मानने कि प्रतिज्ञा करते हो तो, मैं तुम लोगों को इस गर्ताखड्डेमें से निकाल सकती हूँ." उन तीनोंने कहा, "हे सति ! तुम जो कहोगी उसको हम अवश्य मानेगें.” तब सुरुपाने उन तीनों को खड्डे से निकाल कर स्वच्छ जल से स्नानादि कराया. और उन को अपने घर के भोयरा-तलघर में रक्खा . और नीचे के कमरे में रसोई बनाने लगी. महाराजा विक्रम ठीक समय पर गगनधूली के वहां सपरिवार भोजन के लिये आ पहुंचे. किन्तु राजाने भोजन सामग्री कहीं भी बनते न देख कर गगनधूली से कहा, "हे वणिक ! भोजन का समय तो हो गया है, किन्तु कहीं रसोई बनती हुई नहीं दीख रही है. और कुछ तैयारी भी नहीं. , मालुम होती है, हम सभी भूख से बहुत पीडित है, यदि शीघ्र खाने का प्रबन्ध नहीं हुआ तो हम चले जायगे." महाराजा से इस प्रकार की बात सुन कर मुसकराते हुए गगनधूधी ने सबको आसन पर बिठाया और नीचे से शीघ्र सारी सामग्री को मंगवा कर जिमाना शुरू किया.. स्वादु व मधुर सुन्दर मिष्टान आदि अपनी अपनी रुचि के अनुसार भोजन करके महाराजा विक्रम तथा उनके परिवार सभी आनंदित हुए. भोजन के बाद महाराजा विक्रमने कहा, “हे गगनधूली ! तुमने इतने शीन और इतना सुन्दर इन्तजाम कैसे Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.