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________________ '418 विक्रम चरित्र तब उत्तर में सुरुपाने प्रारंभ से अंत तक के सारे ही समाचार अपने पतिदेव को सुना दिये. अपनी प्रिया से सब समाचार सुनकर गगनधूलीने कहा, "हे प्रिये ! उन दोनों की खबर लेने के लिये महाराजा विक्रम खुद यहां आये हैं. तुम कहो तो उन्हे भोजन के लिये निमत्रण दे यहां बुलाऊँ ?" सुरुपाने पतिदेव से कहा, 'घर में सारा ही सामान 'विद्यमान है. मैं भोजन सामग्री तैयार करती हुँ, अतिथि आदि को भोजन कराना हमारा परम धर्म है, हमें अतिथि सत्कार समुचित प्रकार से करना ही चाहिए.' इस प्रकार पत्नी के साथ विचार विमर्श कर गगनधूलीने महाराजा विक्रम के पास आकर कहा, “हे राजन् ! आपके दोनों बुद्धिमान सेवक मूलदेव और शशीभत यहां आये तो अवश्य. लेकिन आने के बाद मेरी पत्नीने उन दोनों को तिरस्कार कर निकाल दिये. यह हकीकत कहने के बाद श्रीमान महाराजा से अपने यहाँ सपरिवार भोजन के लिए निमत्रण किया, महाराजाने भी 'निमंत्रण का सहर्ष स्वीकार किया. महाराज, मूलदेव और शशीभृत का मिलन ___ निमंत्रण दे कर गगनधूली शीघ्र ही अपने घर पहूँच गया. इधर पहले ही सुरुपाने मूलदेव ओर शशीभत के पास जाकर कहा " देखो, मुझे देवताओंने यह वरदान दिया है कि, जो 'मेरा कहना नहीं मानेगा उसका उसी समय मस्तक के दो टुकड़े हो जायगे. यदि तुम मेरी बात को अक्षरशः P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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