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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 417. आप के दोनो दूत वहां छले गये है, या हार गये हैं ! अथवा आपसे प्राप्त धन को लेकर कहीं अन्यत्र दूर देश में मोज मानने चले गये हैं. कुछ दिन बाद जब गगनधूलीने अपने देश जाने की बात कहीं, तब राजाने उससे कहा, "हे गगनधूली ! देखो तुम्हारे वहां मैं भी चलूगा, क्यों कि मेरे दूत भी नहीं लौटे हैं, और तुम्हारी स्त्री की परीक्षा भी हम करना चाहते हैं ? ". / गगनधूलीने कहा, "हे राजन् ! आप जरूर पधारना, मेरी शक्ति के अनुसार मैं आपका आदरसत्कार करूँगा." राजाजी सहित गगनधूली का चंपापुरी की ओर प्रस्थान ___ गगनधूली अपना व्यापार संबंधी लेना-देना आदि सब कार्य से निवृत होकर-धन का संचय कर अवंतीपति महाराजा विक्रमादित्य भी अपने दलबल सहित गगनधूली के साथ चपा-- पुरी के और प्रस्थान किया. मार्ग में गगनधुली महाराजा के आगे तरह तरह की बाते कर आनंद-विनोदपूर्वक समय विताता था, क्रमशः प्रयाण करते करते महाराजा सहित गगन-- धूली च पापुरी में आया. महाराजा को अपनी नगरी के सुंदर भवन में ठहराने कि गगनधूली ने सब व्यवस्था किया, और खुद अपने घर को गया, प्रेमसे अपनी पियासे मिलने पर प्रश्न किया, “तुम्हारा शील मलिन करने के लिये मूलदेव और शशीभृत नाम के दो आदमी यहां कभी आये थे क्या ?" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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