________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित कर अपने भाई के बारे में उस को पूछा, किन्तु कुछ समाचार नहीं मिले. जब महाराजाने मूलदेव की खोज करने जाने को कहा, तब महाराजा के समीप शशीभृतने प्रतिज्ञा की, "मैं शीघ्र गगनधली की उस स्त्री को किसी भी तरह से शील से चलित करूँगा. और मेरे भाई को खोज लाऊँगा.” इस प्रकार उसने भी फिरते फिरते चम्पापुरी में उसी वृद्धा के घर जाकर मुकाम किया. ___ उस वृद्धा के द्वारा मूलदेव का सब वृत्तान्त जान लिया. दूसरे दिन वह वृद्धा उसी प्रकार शशीभृत कि दूती बन कर आई और सुरुपा के आगे शशीभृत के गुण गाये. वह भी सुरुपा द्वारा उसी प्रकार छलसे उसी खड्डे में गिरा दिया गया. जब तीसरे दिन वह वृद्धा शशीभृत की खबर निकालने आई तब सुरुपाने उसे आदर सहित घर में लाकर, और प्रेम से दो चार मीठी बातें कर सदाकी जी खानेवाली इस पापकारी दुष्टा को भी उसी खड्डे में गिरा दिया. नीतिशास्त्र का कहना सच हैं कि " तीन वर्ष या तीन महीने तीन पक्ष या तीन दिवसमें; - अत्युत्कट धर्माधर्मा का फल पाता नर इसी लोक में." 'बहुत बडे-उग्रह पाप या पुण्य का फल मनुष्यों को यहां ही तीन वर्ष या तीन महीने या तीन पक्ष अथवा तो तीन दिन में ही प्राप्त हो जाता है. ... P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust