________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय सयोजित 413 - रखवाई, उस पर बिछौना डाल और शैय्या को सुन्दर-सुशोभित बनाई. बहार से सुंदर दिखाई देनेवाली, उस शैय्या पर बैठनेवाला व्यक्ति शीघ्र ही खड्डे में जा गिरे इस तरह सब व्यवस्था बनाई गई. वह कुटिल वृद्धा सुंदर पान-बिड़ा लेकर सुरुपा के घर आई, पान-बिड़ा को लेकर सुरु पाने वृद्धा से कहा, "तुम कल उस सुंदर पुरुष को अवश्य लाना, मैं उन का पूर्ण आदरसम्मान करूँगी." प्रभात होते ही उस वृद्धा के साथ मूलदेव सुंदर वस्त्रालंकार से सज्जित होकर आया, वृद्धा के साथ आते मूलदेव को देखकर मधुर वचनों से आदर सन्मान कर उस को प्रसन्न कर दिया वह कुटिल वृद्धा मूलदेव को पहूँचा कर अपने घर लौट गई. क्यों कि उसका काम केवल यहां पहूँचाने का और मिलानेका था. गगनधली की प्रिया सुरुपाने उस को आनंद से बैठाया और प्रेम से भोजनादि से संतुष्ट किया, बाद उस खड्डेवाली सुदर शैय्या पर मूलदेव बैठने गया, ज्योंही मूलदेव उस शैय्या पर बैठा कि जीर्ण रस्सी टुट गई और वह खड्डे में धड़ाम से गिर पड़ा, अब वह खडडेसे बहुत प्रयत्न करने पर भी उपर नहीं आ सका. उपर से सुरुपा बोली, " अरे ! यह क्या हुआ ?" बाद में सुरुपा उस को खड्डे में ही रोजाना खानेके लिये दिया P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust